letra de parinda - vatan mirza & trigo (ind)
[vatan mirza & trigo “parinda” के बोल]
[verse 1: vatan mirza]
परिंदा और मैं, हैं हम दोनों आसमान में
और जब भी हम ज़मीन पे तो दोनों हाथ थामते
परिंदा गया कहीं, उसकी जगह ले ली जाम ने
और जला दिया घर मेरा दीपक को थाम के
खण्डहर दिल का खाली, उस में आया ना परिंदा
मैं मलबे के नीचे दबा फ़िर भी हूँ ज़िंदा
परिंदा मेरा पिंजरे में बंद है
और दिल मेरा सर्द पर ना कमरे में ठंड है
क्यूँ उसे लत लगी पिंजरे की?
पिंजरा दो कौड़ी का, वो रहती मेरे दिल में थी
प्यार उसको ना रास आया
जला दिया मुझे जब दीप तेरे पास आया
पंछी का मालिक ख़राब, पिंजरा तोड़ा, जाने दिया
मैंने भी थी पी शराब, पंछी आया, गाने दिया
पाना चाहता मुझको था और मैंने भी था पाने दिया
पंछी आया, मौत लाया, मैंने हसके आने दिया
पिंजरे में गाली सुनी थी, तवक़्क़ो की गाली दूँगा
रिश्ता लाश, फूल सींचे, मुर्दाघर का माली हूँ क्या?
चाहती मुझको उस-सा बनूँ, मैं भी उसको गाली दूँ क्या?
करता प्यार, इज्ज़त, दोनों, आशिक़ अब मैं ज़ाली हूँ क्या?
आशिक़ अब मैं ज़ाली तो फ़िर छोड़ो, मुझको जाने दो
मैं भी भूखा पंछी, मुझको नफ़रत के तुम दाने दो
बन जाओ तुम उसके जैसी, मुझको तुम बहाने दो
तराने को अफ़साने से निकालो, देदो गाने को
हस दे मेरे रोने पे, मुस्कान तुझपे जचती है
देख के तू मुड़ जाती और दीदार से बचती है
लफ़्ज़ों की सरगम वो तेरी कानों में बजती है
रुक थोड़ा, फ़िर तू बोलेगी के
“जिसको मैंने छोड़ा था, वो अब बड़ी हस्ती है” (हाँ)
“जिसको मैंने छोड़ा था, वो अब बड़ी हस्ती है”
[verse 2: trigo]
एक परिंदा (एक परिंदा), उस में जान ज़रा-ज़रा-सी बाकी है (बाकी है)
कौन वो परिंदा, तू भी जानती है (जानती है)
मैं भी जानता हूँ, आजा, जान बाकी है
मुझमें जान भरे तेरे साथ बीता हर पल
मुझसे अंजान लड़ें, डरुँ, करे हरक़त (हरक़त)
अब जो ले डूबता हूँ ख़ुद को यहाँ पे (यहाँ पे)
साँस घुट रही फ़िर भी आस रखे धड़कन (आस)
परिंदा तुझसे मिलके घोंसले को खोजता
सोचता ग़लती कितनी करी और ख़ुद को कोस्ता
बोझ-सा लगे रोज़ ही, ये दर्द भी लगे दोस्त-सा
mirza बैठे साथ, सोचे राज़ इस बोझ का
came to conclusion: कुछ ना मिले परिंदे को
वो बैठा दूर देखे कैसे प्यार ख़रीद ले वो (ख़रीद ले)
बात का ना सर-पैर पर सब गिनते हो
परिंदे को भनक हुई जब टूटने की (टूटने की)
सारे ख़्वाब ख़ुद के माले में ही कुचले वो (कुचले वो)
परिंदे को ना मिला किसी का सहारा (किसी का)
ऐसा कौन था जो तैयार हो सवाल को और जाके पूछ ले वो (पूछ ले वो)
फ़िर वो घूमे यहाँ-वहाँ दरबदर
मैंने कहा परिंदे को, “अपना घर बदल (घर बदल)
उसके साथ ना चला जाए तो मत सम्भल”
मंज़िल ना आए, ना उतरे थकान भी
चलते जाए वो यूँ ही हर पल सफ़र (पल सफ़र)
घर-घर ख़बर की परिंदा करे मायूस सबको
अजीब बातें करे, करे यहाँ मायूस रब को
उसके बगल में उसका साया रख दो
मर चुका है वो, उसकी काया ढक दो
उसकी काया ढक—
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