letra de 15 - purushottam yog (पुरुषोत्तम योग) - shlovij
intro
अर्जुन हैं सामने, लगा ध्यान सुनें अध्याय सभी।
पुरुषोत्तम क्या? और है कौन? कृष्ण भेद बतलाएं तभी।।
verse:-
ज्ञान लेते लेते पहुंचें पंद्रहवें अध्याय पे
अर्जुन सम्मुख माधव के, माधव आगे बताएंगे
कौन हैं पुरुषोत्तम? क्या संसार का स्वरूप?
सुनना ध्यान से, जो ज्ञान माधव अर्जुन को सुनाएंगे।
हमारा ये संसार अर्जुन वृक्ष अविनाशी
हैं जड़े जिसकी ऊपर, जिसकी शाखा नीचे आती
हैं पत्ते जिसके लिप्त, वैदिक स्रोत से हे अर्जुन
जिसकी शाखाएं तीनों गुणों से विकसित कहलाती।
इस संसाररूपी वृक्ष के वास्तविक रूप का अनुभव
किया नहीं जा सकता अर्जुन इस संसार में
तीनों गुणों से मुक्त होना पड़ता जानने को
दुनिया के लोभ,मोह, बंधन सारे त्याग के।
bridge:-
कृष्ण कहते हैं, हे अर्जुन जो पुरुष
मान प्रतिष्ठा व मोह से मुक्त है
ऐसा व्यक्ति ही अविनाशी परमधाम को प्राप्त करता है।।
verse २:-
वैसे तो सूर्य करता प्रकाशित ब्रह्मांड को
लेकिन इस परमधाम को वो भी प्रकाशित कर नहीं पाता
ना चंद्र अग्नि ही इसको प्रकाशित कर सकते हैं
आ जाता यहां जो , वो मृत्युलोक में ना जाता।
स्थित शरीर में जीवात्मा मेरा ही अंश
कर्म जिसके जैसे, उसका वैसा ही होता अंत
आत्मा दूसरे शरीर में जाती है
वो भी कर्मों के आधार पर
पिछले जन्म के लेकर अंश।।
हे अर्जुन, आत्मा को ही कहते जीवात्मा
उसी के आने जाने से ये दुनिया चल पाती है
हो जाती आत्मा शारीरिक बंधन से जब मुक्त
तब वापस ब्रह्म् में जाकर फिर से मिल जाती है।
अर्जुन जिस सूर्य के प्रकाश से है धरती चलती
उस तपते सूरज की अग्नि,ज्योति, प्रकाश मैं हूं।
मेरे संकल्प के द्वारा ही सबका है पोषण होता
अग्नि की ज्योति मैं, और चांद का प्रकाश मैं हूं।
मैं ही पाचन अग्नि के रूप में हर जीव में स्थित
मैं ही चारों प्रकार के अन्न को पचाने वाला
मैं ही समस्त वेदों के द्वारा जानने योग्य अर्जुन
मुझसे ही सारे वेद, मैं ही हर वेद रचाने वाला।।
अर्जुन, सांसारिक जीवों के होते सुन दो प्रकार
क्षर, अक्षर कहलाते उन जीवों के सुन वो प्रकार
क्षर यानि नाशवान, अक्षर यानि अविनाशी अर्जुन
इन दोनों से भी श्रेष्ठ जो बतलाते कुछ इस प्रकार।।
हे अर्जुन, इन दोनों के अतिरिक्त जो श्रेष्ठ है वह है परमात्मा
जो तीनों लोकों का अपने चैतन्य बल से भरण पोषण करता है।।
वेदों में वर्णन जिनका पुरुषोत्तम के नाम से
वो कृष्ण ही है अर्जुन, बात सुनना मेरी ध्यान से
समझ जाता जो ये, क्षर अक्षर को पहचान लेता
असली वो भक्त हो जाता परिचित ज्ञान से।
हे अर्जुन, गोपनीय ये ज्ञान परमशास्त्रो का
स्वयं मैंने, यानि श्री कृष्ण ने सुनाया तुझको
क्या है पुरुषोत्तम? और हैं कौन? क्या है योग वर्णन?
उसका विस्तार से अर्जुन मैंने समझाया तुझको।।
श्री कृष्ण कहते हैं कि जो इस ज्ञान को समझ जाता है
उसे अन्य कुछ जानने की कभी जरूरत नहीं पड़ती।।
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